Tuesday, August 24, 2010

सेक्सी - सेक्सी सक्सेस : मधुरिमा सिंह

विज्ञापन और व्यापार आज के अर्थ युग की सबसे बड़ी बहुरंगी दुनिया है | लगभग २० - २५ वर्ष पहले की बात है , एक सिगरेट कंपनी ने अपना लेदर - कार्टन लाँच किया था | जिसके विज्ञापन में खिड़की में एक सुंदरी की पूरी नंगी पीठ दिखाई गई थी , नारी की सुन्दर त्वचा के साथ लिखा था " नाउ फील न्यू लेदर "| अर्थात अमुक सिगरेट का लेदर कार्टन हाथ में लेकर नारी की नरम नरम पीठ के स्पर्श का आनंद लें | एक अजीब सा डर लगा था , कई तरह से विरोध भी जताया था मैंने | मैंने कहा था नारी के लिए ' लेदर ' जैसा शब्द आने वाले उस युग की ओर संकेत कर रहा है ,जब बाजार में नारी की देह 'लेदर या फ्लैश ' मात्र रह जाएगी | मै टेलीविजन के चैनलों पर दिखाए जा रहे कुछ विज्ञापन दृश्य क्रमशः रख रही हूँ :-
      अधरों पर कामुक आमंत्रण " आजा आजा रसिया "कहती हुई एक फिल्म सुंदरी ' कामसूत्र ' की तर्ज पर ' आम सूत्र ' के रूप में आम के रस को पीने का (होंठों से बूंद बूंद पीने का ) रोमांटिक रहस्य समझाती है | यह किस देश की कुलीन व् सुशील नारी है | 
      अमुक टूथपेस्ट करके ' किस ' करने का मन होता है |
      एक अन्य विज्ञापन में एक युवक ' सुख्यात कम्पनी ' का कच्छा पहन कर , धोखे से महिला प्रसाधन में घुस जाता है | सामान्यतया उसे वहां से पिट कर ही बाहर आना था , किन्तु लिपिस्टिक के कई चुम्बन - चिन्हों के साथ बाहर आता है | क्या यही भारतीय नारी का चरित्र है कि यदि एकांत में नग्न या अर्धनग्न पुरुष मिले तो पचासों स्त्रियाँ उसे चूम डालती हैं | 
      कच्छे की महिमा अपरम्पार हूँ | एक युवक समुद्र तट पर " ब्रांडेड कच्छा " पहन कर खड़ा है , सैकड़ो स्नान सुंदरियाँ बिकनी - सूट पहने हुए दौड़ती हुई आती है , युवक से लिपटती चिपटती है | 
     एक पुरुष विशिष्ट कंपनी का डियोड्रेंट / सैंट इस्तेमाल करता है तो लिफ्ट में जो भी स्त्री चढ़ती है वही उसके साथ अश्लील छेड़छाड़ करती है | युवक फटे नुचे कपड़ों में थका पिटा लिफ्ट से बाहर आती है  (वाह रे बलात्कारी नारी ) | 
     एक युवक सुगंध लगाकर स्वीमिंग पूल के पास से गुज़र जाता है तो सुंदरियों के तन जलने लगते हैं , बर्फ पिघल जाती है , तरण ताल सूख जाता है | वेरी वेरी सेक्सी , हाट जैसी ध्वनियाँ नेपथ्य में गूंजती है | 
      अमुक - रेज़र ब्लेड से दाढ़ी बनाने पर लड़कियां गाल सह्लायेंगी | शर्ट , सूट और टाई वगैरह का भी यही हाल है | अर्धनग्न युवतियाँ सिसकारियाँ भरते हुए लिपटेगी - चिपटेगी गोद में बैठेगी और बहुत कुछ |
     नहाई धोई पूजा की लाल बार्डर की सफ़ेद साड़ी में सुन्दर सी गृहणी , अभिसारिका बन जाएगी | पूजा थाल वाली भारतीय नारी क्या ऐसी ही होती है ?
      टूथपेस्ट और माउथवाश के कारण महिला सुरक्षा कर्मी व् टिकट चेकर बलात्कारी भाव से टाई पकड़कर युवक को खींचती हुई ले जाती है , कार चालक का शराब पीना टेस्ट करने के नाम पर अपने बाल बिखेर कर ब्लाउज का बटन खोल देती है |
      सैंट की ख़ुशबू से स्कर्ट काट कर फेंक देती है |
      एक विशिष्ट कंपनी के कच्छे को इतराती हुई अधनंगी सुंदरी नदी के घाट पर अश्लील तरीके से  धोती है | शायद इसी कंपनी का कच्छा बनियान नर - मादा चिम्पेंजी के अश्लील विज्ञापन से भी प्रदर्शित किया गया है " ये तो बड़ा ट्वाइन है "|
      कहाँ तक गिनाएं | हर वस्तु सेक्सी सुंदरियों ,सैक्सी दृश्यों ,भाषा और ध्वनियों के साथ बिक रही है  | लगनेवाले ,छपनेवाले ,दिखनेवाले सभी एक से ही हैं |
      टेलीविजन के कार्यक्रमों में पुरुष संचालक तो पूरे कपड़ों में सफल है , किन्तु महिला एंकरों के वस्त्र ऊपर और नीचे से छोटे होते जा रहे है | अनावृत देह देखकर भय होता है कि जो कुछ बिना डोरी के पहना है कहीं वह गिर ही न जाये | जो हो भी चूका है एक रम्प पर |
      बढ़ते हुए फैशन शो ...जीरो साइज की सुंदरियाँ अर्ध नग्न होकर 'कैट वाक् करती हुई नज़र आती हैं ,और पुरुषों का डाग-' वाच 'भी |
      कई बरस पहले ' महानायक ' ने एक रहें फत्ते एक रहें हम में अल्प वस्त्रों वाली वालाओं के साथ 'फनी सा फोक सांग'पेश किया था | अब आइटम सांग , भोडे व् अश्लील दृश्य , अश्लील व् फूहड़ भाषा ,कामुक नृत्य भंगिमाओं के साथ कहीं भी बेवजह इस्तेमाल होता है |'चोली ' खटिया ,कबूतर ,बीडी जलैले , इश्क कमीना ,किस मी , कजरारे आदि अनेक आइटम सांग ऐसे हैं , जिनकी न तो कहानी को जरुरत थी न देश और समाज को |
     भारत में नारी मुक्ति की पक्षधर महिलाओं , समाजशास्त्रियों ,चिंतको ,राजनीतिज्ञों , सत्ता और प्रशासन के लोगों से ,  युवाओं से , विद्यार्थियों से , गृहस्तों से , हर नागरिक से पूछना चाहती हूँ मै कि संचार क्रांति के इस युग में क्या यही है भारतीय नारी की छवि ,जिसे भारत के कोने कोने में पहुँचाया जा रहा है ?क्या हमारे देश की नारी बलात्कारी है ? कामुक है ? दुश्चरित है कि वह किसी भी पुरुष को ,अमुक ब्लेड ,सैंट ,सूटिंग ,क्रीम ,कच्छा ,पेस्ट ,सेलफोन ,घडी इत्यादि कोई वस्तु या प्रसाधन इस्तेमाल करने पर चूमने - चाटने ,दुराचरण करने ,सेक्सी अदाएं दिखने के लिए सदैव तत्पर है ?
     दुर्गा जी और शक्ति के आराधक भारत में ,जहाँ वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई या मीराबाई या आधुनिक युग में इंदिरा गाँधी ,महादेवी वर्मा ,सोनिया गाँधी ,प्रतिभा पाटिल ,किरण बेदी इत्यादि के रूप में भारतीय नारी का जो सम्मानजनक स्थान है वहां व्यापारी कंपनियों को नारी के सम्मान का साथ खिलवाड़ करने का क्या अधिकार है ?
     परिवार नियोजन के संसाधनों और सेनिटरी पदार्थों की खुले शब्दों में विज्ञापनों के बारे में तो कहना ही बेकार है | गाँव ,देहात ,शहर ,कस्बों में उपभोक्ता संस्कृति और प्रोडक्ट या माध्यम के रूप में नारी पहुंचाई जा रही है | कहाँ है सेंसर बोर्ड ,कहाँ है कानून ,कहाँ है न्याय ? यह सेक्स सेक्सी सक्सेस व्यापारियों व् पूंजीपतियों को तो भली लगती है पर सावधान 
     'खतरे में है उस राष्ट्र की संस्कृति जिसकी बेटियां ज्ञान और प्रतिभा से रहित विज्ञापन में बिकने वाली देह मात्र हो '| दैहिक सौन्दर्य से अर्जित आजीविका , इससे पहले कभी इतनी सम्मानित नहीं हुई थी | कोई षड्यंत्र हो जैसे | पत्र -पत्रिकाओं ,इलेक्ट्रानिक और जनसंपर्क माध्यमो ,विज्ञापनों और चलचित्रों में सर्वत्र नारी देह का ही प्रदर्शन | जो कुछ आप पढ़ रहे हैं ,आप इससे ज्यादा जानते हैं ,और इससे भी ज्यादा महसूस करते हैं तो चुप क्यों हैं ? साहिर के शब्दों में " जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं ? 

Saturday, August 14, 2010

हे राष्ट्रध्वज

हे राष्ट्रध्वज
तुम्हे याद है ना
हमने तुम्हारे रंगों में
अपने इन्द्रधनुषी रंग
सजोये थे
तुम थे हमारे
गौरव के प्रतीक
हमारी स्वतंत्रता का उद्घोष

हमने हमारी पीढ़ी ने
पढ़ा है इतिहास
स्वतंत्रता संग्राम का

हमारे शहीद
कट कटकर गिरते थे
किन्तु तुम्हे
गिरने नहीं देते थे
एक शहीद के हाथ से
दूसरे शहीद के हाथों में
होते हुए तुम
सदैव उन्नत शिखर होते थे

किन्तु स्नैह स्नैह
आज तुम
कैसे हाथों में आ गए
जो तुमसे स्वयं को
बहुत बड़ा समझते हैं
शहीदों ने तो तुम्हारी खातिर
कफ़न ओढ़े थे
इन्होने तो तुम्हे ही
कफ़न की तरह ओढा है

ये भूल चुके हैं
तुम्हारे गौरव के अर्थ
तुम्हारे सम्मान के नियम

तुमकोई कपडे का टुकड़ा नहीं
जिसे लगाया जाय
मंत्रियों महामंत्रियों की
कारों और मेजों पर
या तुम्हे ओढाया जाय
किसी नेता की अर्थी पर
कफ़न की तरह
या तुम्हे झुका दिया जाय
किसी के मरने पर
क्योकि राष्ट्र में
कोई भी व्यक्ति
तुमसे बड़ा नहीं हो सकता

तुम सम्मान हो भारत का
तुम शान हो हमारी
तुम पहचान हो हमारी

हम चाहते हैं
हम मरे या जियें
तुम लहराते रहो सदा
स्वाधीन भारत के
मुक्त आकाश में

किन्तु हम चाहकर भी
कुछ कह नहीं पाते हैं
तुम बुरा मत मानना
हम मजबूर हैं
क्योंकि हम
छब्बीस जनवरी और
पंद्रह अगस्त के अतिरिक्त
तुमसे मिल नहीं पाते हैं

हमें अधिकार नहीं है
तुम्हे इन दो दिनों के अलावा
अपने पास रखने
या अपने घरों में सजाने का
क्योंकि यह असंबैधानिक है

संबैधानिक है मात्र
तुम्हारे नीचे
झूठी  शपथे लेना..
तुम्हारी ओट लेकर
समूचे देश को बेच देना
तुम्हारे रक्षा सौदों
की दलाली लेना

हे राष्ट्रध्वज
संबैधानिक है
तुम्हारे नीचे
भ्रष्टाचारियों, चोरो, हत्यारों
बलात्कारियों, अपराधियों
तस्करों और गिरोहबाजों का
लोकसभा और विधानसभाओं की
शपथे लेना..?

लेकिन नहीं
हम चाहते हैं
तुम्हारी डोर
ऐसे हाथों में न हो
जो तुम्हे बेंच दे
तुम उठो, इतना ऊपर उठो
कि इनके कलुषित हाथ
तुम्हे छू न पायें...

हे मेरे पावन तिरंगे
तुम अच्छे लगते हो
सरकारी कार्यालयों
विधानसभाओं और
लोकसभा पर फहराते हुए
किन्तु सचमुच
तुम बहुत अच्छे लगते हो
किसी किसान के
छप्पर में लगे हुए
और बहुत बहुत
प्यारे लगते हो
किसी नन्हे
मासूम बच्चे के हाथों में
एक सुनहरे भविष्य के
सतरंगे इन्द्रधनुष
की तरह

हम हैं आज़ाद भारत के गुलाम

हाँ मै तुमसे 
तुमसे और तुम सबसे

देश की सत्ता और
देश के प्रशासन की
ऊँची से ऊँची
कुर्सी पर बैठे लोगों से
दम तोड़ रहे
लोकतंत्र की
लोंकसभा और विधानसभाओं मे
भेड़ों की तरह धंसे हुए
जनप्रतिनिधियों से ..
बेख़ौफ़ कहना चाहती हूँ..

तुमने, तुम सबने, हमको ..
स्वाभिमानी भारत के
स्वाभिमानी नागरिकों को..
विश्व के विकसित और
शक्ति - संपन्न राष्ट्रों के समक्ष
भीख का कटोरा थमाकर
घुटनों के बल बैठा दिया है

जिसमे वे
जो भी अभक्ष्य है
वो अनाज
जो भी अभोग्य है
वो पदार्थ
जो भी अपेय है
वो पेय
जितनी भी
जीवन विरुद्ध हैं
वे औषधियां
तमाम दुनिया की
ठुकराई हुई
वर्जित मूल्यों की
भ्रष्ट अप-संस्कृति
साहित्य-संगीत-कला
और यहाँ तक कि
भाषा की मोहताजी भी
ये शक्तिमदांध राष्ट्र
भीख की तरह
बड़े अनुग्रह से डाल देते हैं

और हम यही
भीख का कटोरा
माथे से छुआकर
उनकी महानता का
गुणगान करते हैं

और हम करें भी तो क्या ?

हमारे भारत का
हर पैदा होता हुआ बच्चा
उनके कर्ज का गुलाम जो है ..

उनसे खैरात मे मिला
पाउडर का ज़हरीला दूध
पी - पीकर हमारी
नई पीढ़ी की संवेदना को
लकवा मार चुका है

भीख मे मिला
उनका घुना हुआ गेहूं
खा-खाकर हमारी पीढ़ी की
चेतना को घुन लग चुका है

हम भला किसी से कह भी क्या सकते हैं?

विदेशी कर्ज की चाबुक खाते हुए
अपनी झुकी हुई पीठ पर
अपनी सरकार अपने प्रशासन और
अपने जन प्रतिनिधियों की
ऐय्याशियों और
फ़िज़ूलखर्चियों का
बोझ लेकर
आँख नाक कान मुह
बंद किये
कोल्हू के बैल की तरह
एक अंतहीन और
निरर्थक रास्ते पर
चलते रहना ही
हमारी नियति है

हम हैं आजाद भारत के गुलाम
करोंडो भारतीय
बंधुआ - भारतवासी

Thursday, August 12, 2010

आर्थिक उपनिवेश

गाँधी सुभाष  
नेहरु और पटेल
ये सभी हमारी
नई पीढ़ी के लिए
कुछ भूले- अधभूले से
मिटे- अधमिटे से
नाम होकर रह गए हैं
हमारी आज की
पीढ़ी के बच्चों
और नौजवानों को
इनके पूरे नाम तक
ठीक से याद नहीं

गाँधी और गांधीवाद को
पिछले पचास सालों में
इतना ओढा और
बिछाया गया है
कि चिथड़े-चिथड़े हो गया है
महात्मा गाँधी का नाम
गांधीवाद का अर्थ
त्याग, तपस्या, बलिदान
स्वावलंबन, स्वराज, स्वदेशी
कुछ भी याद नहीं हमें
स्वदेशी- क्रांति का सफ़ेद खद्दर
अब काला पड़ चुका है

सुभाष चन्द्र बोस 
क्रांति का
धधकता रक्तज्वाल
स्वाधीनता का सैनिक पुरोधा
स्वतंत्रता का महानायक 
आज कितना विस्मृत
कितना अप्रासंगिक
नेताजी ने कहा था
तुम मुझे खून दो
मै तुम्हे आजादी दूंगा

किन्तु इसके बाद...
बिना किसी त्याग
और बलिदान के       
विरासत में आजादी
पाने वाले वर्तमान
राजनैतिक शासकों ने
हमारे खून की
एक एक बूंद चूस ली
और बदले में हमें दी
आर्थिक और मानसिक गुलामी
अन्याय अपराध
भूख और गरीबी

सरदार पटेल ने दीं
सुरक्षित सीमाएं
और किया 
जमींदारी प्रथा का उन्मूलन
रजवाड़ों और रियासतों के
राजतन्त्र का नाश
और पटेल के जाने के
कुछ वर्षों बाद...

धीरे धीरे बदलते
मूल्यों के साथ पैदा हुआ
भ्रष्ट लोकतंत्र का
बहुनायकवाद...सैकड़ों तानाशाह
ग्राम प्रधान से प्रधानमंत्री तक
लेखपाल से राज्यपाल तक
बस राजा ही राजा
और हम रिरियाते ही रहे
एक चौखट से दूसरी चौखट
हुजूर.. माई- बाप
सरकार.. साहब बहादुर

जवाहर लाल नेहरु
एक दार्शनिक, सर्वप्रिय नेता
हमने देखा था सपना
नेहरु के समाजवाद में
समानता और मौलिक अधिकार का
हम वहीँ के वहीं रहे
और सब कुछ
कितना बदल गया

नेहरु के लगाये
वैज्ञानिक उन्नति के बृक्ष में
कीड़े लग गए
नेहरु के स्वावलंबी
उद्द्योग का सपना
बेच दिया तुमने
विदेशी उद्दोगपतियों और
विदेशी व्यापारिक कंपनियों के हाथ

हमने पढ़ा है इतिहास 
तीन सौ साल पहले
व्यापार करने आई
एक ईस्ट इंडिया कम्पनी ने
ढाई सौ साल
गुलाम रखा था हमें

और तुमने स्वयं ही
न्यौत ली सैकड़ों
ईस्ट इंडिया कम्पनियाँ
जो इस राजनैतिक
स्वतंत्रता प्राप्त भारत को
धीरे धीरे बना लेगी
आर्थिक उपनिवेश

...और हम न जाने कितने
ज्ञात- अज्ञात शहीदों के
सपनो की राख
अपनी मुट्ठियों में भरे
जीते रहेंगे
स्वाधीन भारत में
गुलामो की तरह

Saturday, August 7, 2010

वन्दे मातरम

हम तुम्हारी जनसभाओं में 
लगाते हैं नारे 
नारे,जिनके अर्थ
हम आज तक नहीं समझ पाए 
इन्क़लाब ज़िंदाबाद 
इन्क़लाब 
यानि क्रांति
क्रांति यानि 
स्वतंत्रता...?
समानता ...?
अधिकार ...?
लोकतंत्र एक भोथराया शब्द
या शहीदों के सपनो के 
तिरंगे ध्वज का 
रंग उड़ा हुआ टुकड़ा

इसके आलावा कोई परिभाषा 
याद नहीं ठीक से
याद है इतना 
इन शब्दों को 
पिछले पचास सालों में 
इतना दोहराया है कि
इनके अक्षर धुंधले पड़ गए हैं 

गहराए हैं घाव 
भ्रष्टाचार के 
अन्याय - अत्याचार के
हिंसा - बलात्कार के 
भूंख के, गरीबी के
अशिक्षा, अंधकार के 
हमारी आँखों में हैं ज़ख्म
वादों के ख़्वाबों के

अब हमारी आवाज़ों में दम नहीं 
खोखले नारे लगाने का 

हमें नहीं चाहिए 
ये जनसभाए   
ये रैलियाँ
ये झूठे और मनमोहक नारे 

हम नहीं उठाना चाहते
तुम्हारी रैलियों के झंडे 
हम एक बार फिर से 
सृजना चाहते हैं 
एक सुन्दर भारत 

हम नहीं लगाना चाहते 
तुम्हारी जनसभाओं में 
तुम्हारे प्रशस्तिपूर्ण नारे

हम शक्तिशाली 
अखंड आवाज़ में 
सगर्व उच्च स्वरों में 
गाना चाहते हैं राष्ट्रगान
वन्दे मातरम

सन्दर्भ


बहुत सोंच - समझकर 
मै आज यह सब 
उनकी तरफ से लिख रहीं हूँ 
जो सदियों से 
दुखी और बेसहारा हैं
गुलामी की जंजीरें तोड़कर भी 
वे अपने देश में आज भी 
गुलामों की तरह रह रहें हैं  
हालात के तूफान में 
टूटे हुए तिनके की तरह बह रहें हैं 

ये जब भी रोये हैं 
सिर्फ बंद अँधेरे कमरों में 
एक दूसरे के काँधे पर 
सर रखकर , फूट - फूटकर 
मगर बेआवाज़ रोये हैं 
वे जब भी दर्द से तडपे 
या चोट पर कराहें हैं 
सिर्फ सरकारी अस्पतालों में 
या खैराती दवाखानो में 

इनके विरोध इनके 
फटे हुए होंठों से
कभी बाहर नहीं आये 
हर अन्याय ,हर अत्याचार पर 
वे पहले से ज्यादा सहमे 
अन्दर ही अन्दर छटपटाये 
इनके होंठ और ज्यादा फटे 
आँसुओं से चिर् चिराए 

इनकी आवाज़ , शवयात्राओं 
और किराये के जुलूसों के अलावा 
कभी ऊंची नहीं हुई

इनके नाम नहीं होते 
इनके मजहब नहीं होते 
इनकी कोई जात नहीं 
हस्ती क्या हुजूर 
कोई औकात नहीं 

ये सिर्फ सिकुड़े हुए पेट 
भूँख से ऐंठती हुई आंते हैं 
ये सिर्फ फैले हुए हाथ
बीमारी से ज़र्द 
पनियाई हुई आँखे हैं
जीवन का ज़हर 
ये घूँट - घूँट पीते हैं 
बेमतलब मरते 
और बेमतलब जीते हैं 

आप तो सत्ताधारी हैं , शासक हैं 
आपका भला इनसे क्या नाता है 
आप तो इन्हें जनसँख्या के 
आंकड़े ही समझिये 
इन्हें , दुर्घटनाओं और बीमारियों में 
धर्म और जाति की हिंसाओं में 
आतंकवादी सामूहिक नरसंहारों में 
बलात्कारों और जघन्य हत्याओं में 
सिर्फ मृतक आंकड़ों के रूप में पढ़िए 
पन्ना पलटिये और भूल जाईये 

मगर मै सहम गई हूँ 
इनकी डरी - डरी 
खाली खाली आँखों से 
मुझे ये आँखे जीने नहीं दे रही 
इसलिए मै इनकी आँखों में 
अपनी कलम डुबो - डुबोकर
आपको इनकी आत्मा की आवाज
बेख़ौफ़ लिख - लिखकर सुनाने बैठ गई हूँ

आत्मकथ्य


कविता लिखना अलग बात है 
कविता बतियाना अलग बात है
आत्मकथ्य से अधिक आवश्यक है 
स्पष्टीकरण इनका 
इन कविताओं का    
कहना है सिर्फ इतना 
कविता सदा 
साहित्य ही नहीं होती
समय भी होती है 

एक साधक की समाधि 
जब भंग हो जाती है
धरती की पीड़ा से 
जन आर्तनाद से 
जब करुणा से विह्वल हो
अपने तीसरे नेत्र से 
वह करता है समय की समीक्षा 
काल करता स्वयं महाकाल की प्रतीक्षा  
दर्शन ,कला ,सौन्दर्य ,
वेदना और प्रेमाख्यान 
कुछ भी तो विषय नहीं 
इन कविताओं का
इन कविताओं का विषय है राष्ट्र 
राष्ट्र जो केवल
राजनैतिक स्वतंत्रता ही नहीं
राष्ट्र जो केवल
भौगोलिक सीमा ही नहीं
राष्ट्र  जो एक
जटिल,अनभिव्यक्त
किन्तु  सुनिश्चित समूह-प्रत्यय है 
राष्ट्र है तो हम हैं 
राष्ट्र नहीं तो हम भी नहीं 

पचास साल हो गए 
आजादी के रास्ते पर
चलते -चलते 
क्या हम वास्तव में स्वतन्त्र हैं 
क्या यही है वह स्वतंत्रता 
जिसका स्वप्न 
शहीदों ने देखा था 
पिछले गुजरे सालों में 
क्या हमारे शासकों ने
खुद से कभी ये 
सवाल पूछा है 

इन पचास सालों में 
हमने क्या खोया 
क्या पाया है
हमने  जो कुछ भी 
जोड़ा या घटाया है 
उसमे बस 
इतना ही पाया है 
कि हम सिर्फ 
सामूहिक आंकड़ें भर हैं जिन्हें 
हमारे जन-प्रतिनिधियों ने
कुर्सियों  के लिए 
चतुरता से भुनाया है 
और लिख -लिखकर 
पढ़ -पढ़ कर भुलाया है
मैंने  चाहा है 
मेरी कवितायेँ चाहे 
कविता हों या न हों
मगर  दर्पण जरूर हों 
भले ही वे पत्थर खाकर 
चूर चूर हों 
क्योंकि सच का आइना 
अगर चूर - चूर भी हो जाय 
तो वह किर्च - किर्च में 
सच भर लेता है 
सच का आइना 
टुकड़े - टुकड़े होकर
हर  टुकड़े का 
सच हो जाता है 
कैसे भी हो 
संकल्प दर्पण का 
पूर्ण हो जाता है 

...और जो भी कहना है 
मेरी कविताओं में है 
इस सदी का अंत 
होने को आया
भुखमरी ,गरीबी ,
बेरोजगारी और आतंक का 
गहन अँधेरा अभी छट न पाया
वो जो हमारे मसीहा हैं 
हमारे कर्णधार हैं 
वो जो सत्ता हैं , प्रशासक हैं 
हुजुर हैं ,सरकार हैं 
उनसे ,उन सबसे 
पचास साल की आजादी को
पूछना  है बस इतना ही 

चलते - चलते थक गए अब सपनो के पाँव 
बोलो  कितनी  दूर  है  वो  हरियाला  गाँव

Friday, August 6, 2010

सरफ़रोश

ठहरो 
हमारे सर कटाने से पहले 
अपने तेज नाखूनों से  
हमारे जिस्म का 
कोई भी हिस्सा  
खरोंच कर देखो 

सिर्फ आँखों में ही नहीं 
हमारे रगों में भी 
आँसू की रवानी है 

कभी सिंघासन से उतर कर
हमारे पास आना 
सुनना ,यह बड़ी 
दर्दभरी कहानी है
हाँ हमारा 
खून , खून नहीं पानी है
पानी जो 
आँसुओं से भी खारा है
पानी जो 
तेजाब से भी तीखा है 

और जब 
आँसुओं का यह तेजाब 
उतर आता है
हमारी जीभ पर
तो तुम कटवा देते हो 
हमारी ज़ुबाने 

और जब 
यह तेजाब 
दहकता है 
हमारी आँखों में 
तो तुम कटवा देते हो 
हमारे सर     
 प्रिय बंधुवर ,
             मेरे ब्लाग " राष्ट्रकुल के कुलीन " पर आप लोगों की प्रतिक्रियाएं प्राप्त करके बहुत अच्छा लगा | मूलतः मै कवि हूँ ,गद्य बहुत कम लिखती हूँ | जो विचार कविता में नहीं व्यक्त हो सकते वो गद्य में लिखती हूँ | जब भारत की आजादी को पचास वर्ष हुए थे , उस समय मेरा एक विशिष्ट विद्रोही व् क्रन्तिकारी काव्य संकलन " हम हैं आजाद भारत के गुलाम " १५ अगस्त १९९७ में लोकार्पित हुआ था | इसे लेकर उस समय मेरी गिरफ़्तारी की मांग भी हुई थी | मेरी इच्छा बस इतनी ही है कि मेरी कविता अधिक से अधिक राष्ट्रवादी भारतीय पढ़ें |
             आज से अगस्त भर मेरे ब्लाग पर मेरी कवितायेँ पढ़ते रहें और अपनी प्रतिक्रियाएं भेजे | सहयोग बस इतना ही चाहिए कि अधिक से अधिक पाठक जुटें | आप इन्हें कही भी छपवाने के लिए स्वतन्त्र हैं | यदि आप सभी इन्हें बिभिन्न भाषाओँ में अनुवाद कर या करवा सकें तो आपका स्वागत है  जय हिंद , बन्दे मातरम् |
                     मधुरिमा सिंह 
                     मो . ९७११३०८३०५

About Her

Name - Dr. Madhurima Singh.

Date of Birth - 09 May 1956. (Buddha Poornima)

Father's Name - (Late) Shri Ajay Pal Singh.

Mother's Name - (Late) Shrimati Padma Singh.

Husband's Name - Shri Jagannath Singh. (I.A.S. Retd.)


- MA, PH.D, Philosophy (Brilliant Career Through 1st Class).

- Gayan Bhaskar, Gayan Prabhakar.

- Poetess, Writer, Philosopher, Thinker, Orator, Social Worker, Artist, Musician, Organizer & Comparer.

- Famous & Celebrity Poetess of Geet & Gazals.

- Languages - Hindi, English, Sanskrit, Urdu, Bangla & Punjabi.

- She has been translated in National and International Languages.

- Her work is published in famous Newspapers & Magazines Nationally & Internationally.

- Renowned Universities Awarded M.Phil & PH.D's on her Literature.

- She has a very deep knowledge of Buddhist Philosophy, Parapsychology, Poetry & Literature.

- She has been Organizer & Comparer of so many National & International Poet meets, Seminar & Cultural Functions.

- She has traveled over World for Recitation of her Poetry.

- She has been Awarded various National & International Awards & Honers.


Her Published Books -


1. Khandit Pooja ( Spiritual Poetry )

2. Kayi Baras Ke Baad ( Gazal )

3. Aatma, Karm, Punarjanm aur Moksha ( Philosophy )

4. Aakash Hoti Hui Nadi ( Love Poetry )

5. Aag Ki Khushbu ( Urdu Gazals )

6. Ye Bhi To Ho Sakta Hai ( Gazals )

7. Hum Hain Aazad Bharat Ke Gulam ( Revolutionary Poetry)

8. Bansuri Mein Phool Aa Gaye ( Geet )

9. Jaane Kab Ho Phera ( Nirgun Sabad )

10. Paashani ( Three Short Khand Kavya )

11. Lamhe - Lamhe ( Urdu Gazals & Nazms )

12. Swayamsiddha Yashodhara ( Khand Kavya on Lord Buddha )

13. Neem Ke Phool ( Love & Spiritual Poetry )

14. Aag Ke Phool ( Love Poetry )

15. Suraj Ke Luttere ( Revolutionary Nazm )

16. Pathhar Ke Parr ( Gazals )

17. Haan, Main Aurat Hoon ( Poetry of Women lib)

18. Mann Ke Rishte ( Sansmaran )

19. Pathhar Ke Panno Par ( Collection Famous Poetries )


Awards & Honers -

· 1988 Gorakhpur Geet Dvara (Precious Poetic Personality)

· 1992 Kavya Sangrah ‘Khandit Pooja’ Uttar Pradesh (U.P.) Hindi Sansthaan dvara ‘Mahadevi Verma Anushnsa’ Puruskaar.

· 1993 Akhil Bhartiya Lekhika Parishad Puruskar.

· 1993 Gazal-Sangrah ‘Kayi Baras Ke Baad’ U.P. Hindi Sansthaan dvara Nirala Naamit ‘Sammaan’ Puraskrit.

· 1994 ‘Mahadevi Verma’ Sammaan.

· 1995 Aslam Memorial Society dvara Pratham ‘Hindi-Gazal Award’.

· 1996 April ‘Pancham Vishv Hindi Sammelan’ ‘Bhartiya Vidya Sansthaan’ Trinidad, America ki Sahbhaagita ke Anantar Kayi Ekal-Kavya Paath Tatha ‘Bhartiya Vidya Sansthaan’ Trinidad, America dvara ‘Sammaan’.

· U.P. Mahila Manch dvara ‘Divya Sammaan’.

· 1996 Hindi Sahitya Sammelan Puruskaar.

· 1997 Sahitya Seva ke liye ‘National Solidarity’ Sammaan.

· 1997 Hindi Sahitya Sammelan Puruskaar.

· 1997 ‘Antarashtriya-Sahitya-Sanskrit_Vikas-Sansthaan’ Jabalpur, M.P. dvara Vishishth- Sahityaseva Sammaan.

· 1997 Naagrik Surakhsha Sangathan Lucknow dvara Sammaan.

· 1997 Gadtantra-Diwas Samaroh, Lucknow dvara ‘Sarvshreshth Sahitik Vyaktitva’ Shaskiya Sammaan.

· Manas-Sangam Kanpur dvara ‘Tulsi-Panchshati’ Sammaan.

· 1998 Internation Women Of The Year Award, Biography Center, Cambridge, England.

· ‘Bhartiya Fankaar Socirty’ dvara hindi sahitya par ‘Mahadevi Verma’ Award.

· CEC dvara ‘U.P. Ratna’ se Sammaanit.

· 1999 ‘Tulsipeeth’ Chitrakoot dvara ‘Tulsi-Bharti-Samlankaran’.

· Sant Kabir Pashth Shatabdi Antarashtriya treeya Adhiveshan ‘Dakshini America dvara’ ‘Antarashtriya Kabir’ Sammaan.

· Antarashtriya Bhartiya Vidya Sansthaan dvara ‘Trinidad Hindi Shikhar’ Sammaan.

· ‘Pinnacle of Poetry’ Award, Trinidad and Tobago, West Indies, South America.

· Saksharta Niketan Lucknow dvara ‘Vishishth Seva’ Sammaan.

· 2001, 14 September, ko Krishnonmukhi-Sahitya Sansthaan dvara ‘Vishishth Sahitya Seva’ Sammaan.

· Paatha Mahotsav Chitrakoot dvara Aadivaasi Kshetra mein Ullekhniya Samaj Seva hetu ‘Samaj Seva’ Sammaan.

· Sahitya Kalaa Seva Sansthaan, U.P. dvara ‘Sahitya Vibhooti Sammaan’.

· Uttar Pradesh Gaurav Award.

· Observer Award.

· 2005 Nazir Banarsi Award.

· Parveen Shaakir Award (Gazal).

Contact Details -


Mobile: +919711308305
Home: +911204294686
E-Mail: madhurima.shayara@gmail.com


Present Address:
T-5/ 302, George Town,
NRI City, GH-1,
Omega- 2, Greater Noida.
U.P. 201308.


Permanent Address-
2/71, Vijay Khand,
Gomti Nagar, Lucknow.
U.P. 226010.