Monday, September 22, 2014

काश कहीं बिछड़ा वो बचपन मिल जाए


काश कहीं बिछड़ा वो बचपन मिल जाए
काश कहीं बिछड़ा वो बचपन मिल जाए
लुका छिपी खेलें फिर अंखियों को मीचें
रहट वाले बैलों  की  रस्सी  को   खीचें
छिछली  सी  नहर में छपा-छपक कूदें
गड़हे  के  पानी  से  खेतों  को   सीचें

बछड़े  संग  होड़  करें  गैया  रंभाय
काश कहीं बिछड़ा वो बचपन मिल जाए

नौ  के पहाड़े पर बाबू से पिटना
धुंधुवाती ढिबरी में रात-रात रटना
नीम के तले वाली गुरूजी की शाला
छोटे से छप्पर में बच्चों का अटना

डिब्बे का खाना कोई साथी खा जाए
काश कहीं बिछड़ा वो बचपन मिल जाए

सजे-धजे लेहडू  पर मेले को  जाना
अम्मा और भौजी का ढोलक पे गाना
मौत का कुआँ,जादू,गुड़िया खिलौने
बचपन की खुशियाँ बस आना दो आना

राह  पड़ी  भूतों  को  बगिया   डराए
काश कहीं बिछड़ा वो बचपन मिल जाए

Saturday, August 9, 2014

अंग्रेजी भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान (अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन (९ / ८ / १९४२) की ७३वीं वर्ष-गाँठ के अवसर पर)

अंग्रेजो भारत छोड़ो (९ अगस्त १९४२) 
अंग्रेजी भारत छोड़ो (९ अगस्त २०१४) 
       ६८ साल पहले अंग्रेजो की गुलामी से हम अवश्य आज़ाद हो चुके हैं,  पर हम भारतीय  आज भी अंग्रेजी की गुलामी कर रहे हैं । स्कूल- कालेजों में नौकरी में  समाज में चारो और अंग्रेजी का ही  बोलबाला चल रहा है । अंग्रेजी माध्यम के स्कूली  बच्चे अधिक बुद्धिमान म।ने जाते हैं । अंग्रेजी  माध्यम के प्राध्यापको का बेतन भी काफी अधिक होता है । नौकरी में कम्पटीशन में अंग्रेजी का ही वर्चस्व है । यू.पी.यस.सी. द्वारा सी-सेट के माध्यम से भारतीय भाषाओं विशेषतः हिंदी माध्यम् के छात्रों को मुख्य धारा से काटने का सुनुयोजित षडयंत्र है । इसके कारण विगत वर्षों में सिविल सेवा प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी माध्यम के छात्रों का सफलता प्रतिशत मात्र ५-६ %ही रह गया है । ऐसी स्थिति में भारतीय भाषाओं विशेषकर हिंदी भाषी क्षेत्रों के युवाओं का आक्रोश स्वाभाविक है, जिसमे देश में कोई भी आज युवाओं का साथ नही दे रहा । जब ऐसे काले अंग्रेज (मैकॉले वाले) आई.ए.इस / पी.सी.एस होकर अलग अलग प्रांतों में नियुक्त होते हैं तो प्रशासनिक कुर्सियों पर बैठकर आम आदमी की बात सुन समझ नही सकते । ऐसी स्थिति मे विकास और न्याय को जनता के द्वार ले जाने की बातें नितांत हास्यास्पद लगती है । यदि सरकार को देशवासियों का हित करना चाहती है, तो  सी-सेट को हटा देना चाहिए । सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा में 300 अंक अंग्रेजी का एक अनिवार्य प्रश्न पत्र तो होता ही है, जो सरकार की मंशा को स्वतः पूरा कर देता है । सरकार गलतियाँ करती है और युवा झेलते हैं। धरना, प्रदर्शन, अनशन , आंदोलन, लाठीचार्ज, जेल उनकी किस्मत है । ऐसी स्थिति में आक्रोशग्रस्त कुछ युवा आत्मदाह तक कर लेते हैं, पर सरकारों के कानो तक जूं तक नहीं रेंगती । जब तक पिछवाड़े की कुर्सियों को खतरा नही उत्पन्न होता, किसान मरें या देश के बच्चे सरकार को कोई फर्क नही पड़ता । सीसेट आंदोलन के वर्तमान परिदृश्य में २४ अगस्त से प्रस्तावित सीसेट परीक्षा को तो स्थगित किया जाना सर्वथा उचित प्रतीत होता है ।

      अपने शहर के पाश बाजारों से गुजर कर लगता है कि जैसे इंग्लॅण्ड और अमेरिका के बाजारों में गुजर रहे हों । हिंदी तो  शर्मिंदा करती है, गरीबों और देहातियों की भाषा है। इसका स्तेमाल ही कौन करना चाहता है।  तभी तो गली  कूंचों में कुकुरमुत्तों की तरह अंग्रेजी माध्यम के प्राथमिक विद्यालय उग आएं हैं । अंग्रेजी आपके सुखद भविष्य की गारंटी बन गयी है । कितनी हास्यास्पद स्थिति है कि विवाह के बाजार में अंग्रेजी बोलने वाली कन्या को ही अच्छा वर मिलता है । वक्त आ गया है कि हम सब भारतीय मिलकर उद्घोष करें कि अंग्रेजी भारत छोड़ो। ताकि सत्ता, प्रशासन और न्याय को आम आदमी से जोडा जा सके । यह तभी संभव है जब ९ अगस्त १९४२ के अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन की भांति आज ९ अगस्त २०१४ को अंग्रेजी भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ने का संकल्प लिया जाय ।  

       अभी हम देखेंगे कि हिंदी दिवस/ हिंदी पखवारे वाले १४ सितम्बर को सत्ता तथा प्रशासन के तथाकथित हिंदी प्रेम का बुखार चारो ओर दिखने लगेगा । इस बार के हिंदी दिवस पर सी-सेट समाप्त करके हिंदी भाषी युवाओ को उपहार मिल ही जाना चाहिए । 

अंग्रेजी भारत छोड़ो
सत्ता - प्रशासन और न्याय को
आम आदमी से जोड़ो

तपती रेत पे चलते - चलते मीलों बस तन्हाई मिली
हमको तो पानी से ज़ियादा पानी की परछाईं मिली

डॉ मधुरिमा सिंह
९ अगस्त २०१४
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+919235614201
+919235614200

Saturday, December 22, 2012

बलात्कार के मूक दर्शक

  
                           बलात्कार के मूक दर्शक

बलात्कार का जुर्म एक ऐसा जुर्म है जिसमें अपराधी बलात्कृत 'स्त्री' की केवल शारिरिक हत्या ही नही करता बल्कि उसकी आत्मा की हत्या भी करता है । इस जुर्म की सज़ा हत्या की सज़ा से ज़्यादा होनी चाहिये । कभी कभी शरीर बच भी जाता है तो भी ऐसी महिला जीवित मृत होती है । सिर्फ़ शरीर का ज़िंदा रहना ज़िन्दगी नहीं । शारिरिक, मानसिक और आत्मिक यन्त्रणा औरत को न जीने देती है न मरने देती है ।
                                                                   किन माँओं की कोख से ऐसे बलात्कारी जनम लेते हैं । कौनसे समाज का ऐसा संस्कार है जो हमारी युवा पीढ़ी को हवस का दरिंदा बनाये दे रहा है । वासना की ऐसी कौनसी आग है जो कैसे भी बुझती नही ? बलात्कार या सामूहिक बलात्कार हमारे लोक तांत्रिक देश की रोज़ाना की खबरें हैं । अभी हाल में ही दिल्ली की चलती हुई बस में युवती के साथ हुआ सामूहिक बलात्कार ,जिसमें नृशंसता की भी सारी सीमाएं तोड़ दी गयीं। पूरा देश दहलकर रह गया । बढ़ते हुए यौन अपराधों के लिए कौन है दोषी ? मूक दर्शक नपुंसक समाज,संवेदनहीन भीड़,मूक दर्शक,पुलिस और प्रशासन ,मूक दर्शक भ्रष्ट सत्ता,संसद,विधानसभाएं या अन्धी, गूँगी, बहरी जनता या तथाकथित कानून व्यवस्था जो ऐसे हाथो में हैं जो औरत का साथ नही देते तो क्यों न कानून बलात्कृत नारी के हाथ में सौप दिया जाये ताकि वो ऐसे जघन्य अपराधियों को स्वयं ही मृत्यु दण्ड दे सके ।
     सम्मानित,भ्रष्ट,और दुराचारी-व्यभिचारी,राजनीतिज्ञ,
प्रशासन और पुलिस के  व्यभिचारी,अधिकारी, जो स्वयं सेक्स स्कैंडल और सेक्स रैकिट में लिप्त हैं, सेक्स उद्योग के व्यापारी और उपभोक्ता,नारी देह के व्यापारी और तस्कर ? क्या ये लोग वास्तव में राष्ट्र की बहु-बेटियों को सामाजिक न्याय दे सकेंगे ? क्या न्यायपालिका,व्यवस्थापिका और कार्यपालिका द्वारा औरत का दर्द महसूस किया जाता है ?
                                                       उपभोक्ता संस्कृति में स्त्री, नारी, औरत केवल विज्ञापन की वस्तु है, माध्यम है, अश्लील पोस्टर है, अश्लील आईटम है, भोग की वस्तु है, वो अश्लील गानों की अश्लील ज़हरीली आवाज़ है । फिल्मों और टीवी चैन्नलों में संवेदनहीन नपुंसक सेंसर बोर्ड के चलते औरत नंगी,अश्लील-कामुक,वस्तु,पदार्थ और भंगिमा मात्र है । गंदे फूहढ़ अश्लील गानों पर नाचते-मटकते सुपर स्टार और अधनंगी हिरोइने , निरंकुश मनोरंजन उद्योग, निरंकुश अपराधी जगत, निरंकुश सत्ता और प्रशासन क्या कभी औरत को सम्मान, आदर और उसके हिस्से का न्याय दे सके हैं या दे पायेंगे ?
                   बलात्कारी को अधिक से अधिक 7 वर्ष की सज़ा होती है : औरत को उम्र भर की, वाह क्या न्याय है ? ऐसे दरिंदो और वहशियों को सरे बाज़ार जिंदा जला देना चाहिए, या गोलियों से भून देना चाहिए या फ़ासी की सज़ा दे देनी चाहिए । यदि कानून अक्षम है बेबस है तो स्त्री को अपना न्याय स्वयं करने दें । आदि-शक्ति की भाँति नारी के हाथ में शस्त्र सौप दें ।
                                                 कठोर शब्दों में निंदा, हार्दिक संवेदना, हाथो में तख्तियां और पोस्टर लिए हुए जुलूस, या मोमबत्तियां लिए हुए शांति प्रदर्शन । क्या वाकई इतनी शांति की ज़रूरत है या व्यापक सशस्त्र क्रांति की । फ़ैसला आपके और हमारे हाथो में है ।

-डाँo मधुरिमा सिंह
                              

    
                     
                            

Saturday, March 19, 2011

होली आई रे


होली आई रे आई रे होली आई रे 

होली  है  खुशियों का वक्त 
होली  फूंकते  कई दरख्त
चंदा   देने  मे  जो  सख्त
स्वाहा उसका कुर्सी तख़्त 

अरे होली मे होली जलाई रे 
होली आई रे ....

मीठी  मन  मे  उठे  तरंग 
मिल  गई  ठंडाई  मे  भंग 
साली- जीजा  जी से  तंग 
छिड़ गई देवर भाभी जंग 

लल्ला लेंगे तुमसे ही धुलाई रे 
होली आई रे ....

होली  उड़ता  रंग गुलाल 
लड्डू  बर्फी गुझिया थाल
बजते  ढोल  मजीरा ताल 
पीली चुंदरी हो गई लाल 

भौजी भईया से मांगे भरपाई रे 
होली आई रे ....

होली  रंगों  का  त्यौहार 
होली  खुशबु  की  बौछार 
होली  हर  हिंसा  की  हार
होली प्यार प्यार बस प्यार

महके अमवा की बगिया बौराई रे
होली आई रे ....

Monday, January 3, 2011

ये नया साल एक जलता हुआ सवाल : डॉ मधुरिमा सिंह

भूख   प्यास    गरीबी   बीमारी 
अशिक्षा बेरोजगारी कर्जदारी 
कर्जे   किश्तें  उधारी   देनदारी  
                   मंदी      बंदी           हड़तालें 
                   नफ़रत हिंसा और बवाल 
                   ये  नया  साल
बाजीगरी   तमाशा    ऐय्यारी 
विधायक सांसद अधिकारी 
लूटेंगे     सभी    बारी -  बारी
                    कल तक थी उनकी बाज़ी
                    अबके     है    इनकी      चाल
                    ये  नया  साल
चोरी डकैती हत्या  बलात्कार 
रिश्वत      घोटाले        भ्रष्टाचार 
नष्ट   न्यायालय भ्रष्ट   सरकार 
                      महंगी   दवा   हवा    पानी
                      महंगी सब्जी रोटी दाल
                      ये  नया  साल
रेल बस अस्पताल बमों के धमाके 
जनता  को रखती टी वी उलझाकर  
नाच - गाने   फिल्मे हंसी के   ठहाके 
                      नंगे   गंदे   भोंडे अश्लील  
                      विज्ञापनो     का    जाल 
                      ये  नया  साल 
 
 बुलेटप्रूफ  सुरक्षाएं  कैट कमांडो और  गार्ड्स 
लोकतंत्र की गद्दी पर   हाउस आफ लार्ड्स 
राजनीतिक   जुओं    मे     कुर्सी    के    कार्ड्स  
                      हम   सब    निहत्थे   नंगे    सिर
                      न    तीर- तलवार न  कोई  ढाल
                      ये  नया  साल 

Wednesday, September 29, 2010

अयोध्या पर फैसले के सन्दर्भ में

हित में भारत के प्रभूकरना ऐसा न्याय,
अयोध्या के इतिहास में
जुड़े नया अध्याय,
राम और अल्लाह में 
नहीं है कोई फर्क 
नफ़रत हिंसा से करो 
चाहे जितने तर्क,
सच्चाई की जीत हो
हे हनुमत बलधाम
मंदिर में अल्लाह मिले
मस्जिद में राम, 
भारत में होती रहे
 पूजा और आज़ान,
दो धर्मों की आग में 
जले न हिंदुस्तान

Saturday, September 11, 2010

इंडिया माता की जय : डॉ मधुरिमा सिंह

 बुरा मत मानिये , वह दिन लगभग आ ही चुका है , जब ' भारत माता की जय ' जयघोष के स्थान पर ' इंडिया माता की जय ' का ही जयघोष गूंजेगा | 'भारत ' शब्द तो धुंधला -धुंधला सा कभी कभार दिखाई - सुनायी पड़ जाता है , किन्तु हमारी नागरिकता के पहचान का शब्द ' भारतीय ' को ' इंडियन ' शब्द ने कुचल दिया है | विदेशों मे और प्रायः भारत मे भी हम ' इंडियन ' ही कहलाते हैं | सोलहवी शताब्दी मे ' ईस्ट इंडिया कंपनी ' भारत व्यापार करने के बहाने आई और राज करने लगी थी | अट्ठारह सौ सत्तावन के ' प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ' को कुचल दिया गया था बगावत का नाम देकर | यदि फिरंगी अँगरेज़ बहुत न्यायप्रिय थे तो भारत को भारत की सत्ता सौंपकर ईस्ट इंडिया कंपनी लौट जाती , किन्तु साम्रज्यबादी ब्रिटिश हुकूमत ने अट्ठारह सौ सत्तावन की ' प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति 'कोकुचल दिया गया था बगावत का नाम देकर | यदि फिरंगी अंग्रेज बहुत न्यायप्रिय थे तो भारत को सत्ता सौंपकर कम्पनी लौट जाती , किन्तु साम्राज्यबादी ब्रिटिश हुकूमत ने अट्ठारह सौ अट्ठावन मे विधिवत ब्रिटिश साम्राज्य और क्वीन विक्टोरिया की सत्ता स्थापित कर दी | यानि 'ईस्ट इंडिया कंपनी ' का... ' कम्पनी ' शब्द ब्रिटेन लौटा   किन्तु  ' इंडियन 'शब्द भारत मे ही छोड़ गया और आज दो हज़ार दस तक हम 'इंडिया ' और ' इंडियन ' शब्द से इतना डूब चुके हैं कि हमें अपनी स्वतन्त्र - सत्ता और स्वाभिमान की परिचायक अपनी स्वतन्त्र - स्वाभिमानी संज्ञा ' भारत ' और ' भारतीय ' शब्द ही अपरचित लगने लगे हैं |
                  हमारे संविधान की प्रस्तावना का ' इंडिया दैट इज भारत ' शब्द- समूह पर्याप्त भ्रामक है ही | साथ ही आज़ादी के तिरसठ साल बाद भी हमारे समस्त राजनीतिक दल (राष्ट्रीय या प्रांतीय ) इस विषय पर मौन ही रहे | वैसे भी राजनीतिक मतवैभिन्य एक अलग बात है , किन्तु राष्ट्र की स्वतंत्रता और अस्मिता के प्रश्न पर ऐसी उपेक्षा राष्ट्रद्रोह और कायरता समझी जानी चाहिए | यहाँ तक शीर्षस्थ नेतृत्व , मुख्यमंत्रियों , प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जैसी समादृत और लोकत्रांत्रिक पदों से भी विश्व - पटल पर यह कभी नहीं कहा गया कि हमारी संज्ञा ' भारत ' है और नागरिकता  ' भारतीय ' | शायद उन्हें ' इंडिया ' का ' इंडियन ' प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने मे कोई लज्जा न आई हो | आम  भारतीय नागरिको के धन के बलबूते विलासपूर्ण विदेश यात्राओं पर प्रायः छोटे बड़े नेता जाते ही रहते हैं | घूम - टहल कर शापिंग करके लौट आते हैं | पर विदोशों मे भारत की स्वतन्त्र संज्ञा का उद्घोष नहीं करते |
                  भारत के स्वतंत्रता संग्राम के डेढ़ सौ सालों मे ' राष्ट्र -भक्ति ' के मूल्य बदल गए | हमारे क्रन्तिकारी ' भारत माता की जय ' बोलते हुए जिस महान राष्ट्र भारत के लिए शहीद हो गए , उनकी क़ुरबानी ने जिस गुलाम देश मे स्वतन्त्र भारत का सम्मान दिलाया कहाँ है वो भारत , कहाँ है वो ' भारत माता ' ?
                 पीकिंग को ' बीजिंग ' , कम्बोडिया को ' कम्पूचिया ', बर्मा को ' म्यामार ' , मद्रास को ' मुंबई ' , मद्रास को ' चेन्नई ' , कलकत्ता  को ' कोलकाता  ' स्वीकार करने वाला विश्व क्या स्वतन्त्र भारत को उसके ' भारत ' नाम से नहीं पहचानता | किन्तु प्रश्न है कि इस प्रश्न पर हम राजनीतिक ,प्रशासनिक , न्यायिक और सामाजिक तथा वैयत्तिक स्तर पर कितनी तड़फ और इसके लिए कितने दृढ़ संकल्पित हैं ? अभी रूपये का चिन्ह  भी सर्व स्वीकृत हुआ ही है |
                  अभी  हाल मे ही बालीवुड के आशकर विजेता एक महान संगीतकार को बिना किसी संवैधानिक सम्मति के अकारण ही , भारत के राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत , यानि ' जन -गण -मन अधिनायक ' तथा ' बन्दे मातरम ' के साथ छेड़छाड़ करने की स्वतंत्रता दे दी गयी | राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत कोई फ़िल्मी गाना नहीं है जो रिमिक्स कर दिया जाय | क्या जो पवित्र और प्रचलित , चिरपरिचित ' धुन ' इन राष्ट्रीय -प्रतीक -गीतों की थी ,क्या वास्तव मे उसमे कोई परिवर्तन ज़रूरी था भी या नहीं , क्या राष्ट्र के नागरिको से इस विषय मे पूछा गया था ? तिस पर अभी राष्ट्रकुल  खेलो के ' थीमसांग ' का ठेका भी उन्हें मिल गया ? जो गीत लोकार्पित हुआ , वह निहायत बेहूदा , बेसुरा और उटपटांग है | ' इंडिया ' तो वहाँ भी है ही | पर गीत मे न तो भारत है , न भारत की संस्कृत और सभ्यता | तिस पर  गरीब जनता का पांच करोंड़ रुपया इस बेहूदगी पर खर्च हुआ | पांच करोड़ का एक गीत , पंद्रह सौ करोड़ का उद्घाटन का नाच गाना और शेष आयोजन का क्या कहना | सत्ताधारी दल के बाप का पैसा है न ? जितना लूट सको तो लूटो , लूट की खुली छूट  है |
                २६ जनवरी की परेड मे विद्द्यालयों के निःशुल्क कार्यक्रमों मे इससे सुन्दर गीत संगीत का प्रदर्शन होता है , उसी का उपयोग करके गरीब जनता का कुछ धन बचाते | ' इंडिया ' के बजाय भारत की नमक हलाली करते |
                हम भारतवासी शक्ति के उपासक हैं " जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी " के सिद्धांत को मानने वाले हैं | हम 'भारत माता ' के उपासक हैं और रहेंगे | हमारे अमर सहीदों ने जिन बेड़ियों से  भारत माता को मुक्त कराया , उसे हम बिदेशियों के हाथों फिर गुलाम नहीं बनने देंगे | आज़ादी के पहले की लडाई मे हमारी भूमिका नहीं थी , किन्तु आज़ादी के बाद की लड़ाई अभी  बाकी है | जो हमारे अस्तित्व और अस्मिता की लडाई है |
                अपने विश्व के अन्य किसी देश को ' अमेरिका माता ' ' रूस माता ' ' ब्रिटेन माता ' 'पाकिस्तान माता ' ' जापान माता ' 'चीन माता ' आदि कहते हुए सुना है ? हमारी  समानता विश्व मे अन्यत्र कही नहीं | हम भारतवासी सगर्व उद्घोष करते हैं हम भारत माता की संतान हैं | भारत के मुस्लमान भाईयों से मेरा कहना है कि सभी जानते हैं कि पवित्र ग्रन्थ ' कुरान शरीफ ' के अनुसार मा के पांव के नीचे जन्नत होती है | यानि मा की पूजा बुतपरस्ती नहीं होती | मादरे वतन भी मा ही है | ' भारत माता की जय ' या बन्दे मातरम ' भी वतनपरस्ती है बुतपरस्ती नहीं |आज़ादी की लडाई मे बंदे - मातरम हर भारतीय क्रन्तिकारी का नारा था |
                हमारी आज की पीढ़ी ' इंडिया ' और ' इंडियन ' शब्द का  ही प्रयोग करती है | खुद को भारतीय कहना गंवारू लगता है |
                लगभग दस वर्ष पूर्व एक विदेश यात्रा मे साऊथ अमेरिका के त्रिनिदाद एंड टोबैगो मे मुझे दो अंतर्राष्ट्रीय सम्मान मिले थे और मेरी उस समय तक प्रकाशित बीस काव्य कृतियों की प्रदर्शनी भी लगी थी | इस अवसर पर मैंने आग्रह क्या दुराग्रह् पूर्वक  ' भारत ' और ' भारतीय ' शब्दों का प्रयोग बैनर पर विदेशी आयोजको से करवाया था , पुरस्कार समारोह के समय भारत का राष्ट्रगान भी बजाय गया था तथा राष्ट्रध्वज भी फहराया गया था | तभी मैंने पुरुस्कार स्वीकार था | इस अवसर पर एक अमेरिकी पत्रकार से बाद - विवाद भी हुआ था | उन्हें भातीय शब्द से आपत्ति थी | तब मैंने कहा था कि यदि अमेरिका शब्द का अनुवाद करूँ तो उन्हें कैसा लगेगा ? जब उन्हें उनके देश के नाम का अनुवाद पर आपत्ति है तो हमारे देश भारत का ही अनुवाद क्यों किया जाता है ? क्या विश्व की किसी भाषा के व्याकरण मे व्यक्तिवाचक संज्ञा का अनुवाद न्यायसंगत है ?
               समय रहते भारत के नागरिक इस ' संज्ञा ' के प्रति विश्व को विवस करें तथा स्वयं भी प्रयोग करें | राजनीतिक दल , विधायिका ,कार्यपालिका ,न्यायपालिका ,सामाजिक संगठन , बुद्धिजीवी और नागरिक सब मिलकर अपनी राष्ट्रीय अस्मिता का प्रचार करेंगे , ऐसा मेरा विश्वास है |
             अन्यथा स्वतंत्रता के तिरसठ साल बाद भी ' कामन वैल्थ कंट्रीज की गुलाम पंक्ति मे घुटनों के बल बैठकर ब्रिटिश सम्राज्ञी के दस्ताने से ढके महान और पवित्र हाथ को चूमते हुए  (फ़िलहाल क्वीन बटन तो है ही ) हम इन्डियन सगर्व उद्घोष करें " इंडिया माता की जय " |

About Her

Name - Dr. Madhurima Singh.

Date of Birth - 09 May 1956. (Buddha Poornima)

Father's Name - (Late) Shri Ajay Pal Singh.

Mother's Name - (Late) Shrimati Padma Singh.

Husband's Name - Shri Jagannath Singh. (I.A.S. Retd.)


- MA, PH.D, Philosophy (Brilliant Career Through 1st Class).

- Gayan Bhaskar, Gayan Prabhakar.

- Poetess, Writer, Philosopher, Thinker, Orator, Social Worker, Artist, Musician, Organizer & Comparer.

- Famous & Celebrity Poetess of Geet & Gazals.

- Languages - Hindi, English, Sanskrit, Urdu, Bangla & Punjabi.

- She has been translated in National and International Languages.

- Her work is published in famous Newspapers & Magazines Nationally & Internationally.

- Renowned Universities Awarded M.Phil & PH.D's on her Literature.

- She has a very deep knowledge of Buddhist Philosophy, Parapsychology, Poetry & Literature.

- She has been Organizer & Comparer of so many National & International Poet meets, Seminar & Cultural Functions.

- She has traveled over World for Recitation of her Poetry.

- She has been Awarded various National & International Awards & Honers.


Her Published Books -


1. Khandit Pooja ( Spiritual Poetry )

2. Kayi Baras Ke Baad ( Gazal )

3. Aatma, Karm, Punarjanm aur Moksha ( Philosophy )

4. Aakash Hoti Hui Nadi ( Love Poetry )

5. Aag Ki Khushbu ( Urdu Gazals )

6. Ye Bhi To Ho Sakta Hai ( Gazals )

7. Hum Hain Aazad Bharat Ke Gulam ( Revolutionary Poetry)

8. Bansuri Mein Phool Aa Gaye ( Geet )

9. Jaane Kab Ho Phera ( Nirgun Sabad )

10. Paashani ( Three Short Khand Kavya )

11. Lamhe - Lamhe ( Urdu Gazals & Nazms )

12. Swayamsiddha Yashodhara ( Khand Kavya on Lord Buddha )

13. Neem Ke Phool ( Love & Spiritual Poetry )

14. Aag Ke Phool ( Love Poetry )

15. Suraj Ke Luttere ( Revolutionary Nazm )

16. Pathhar Ke Parr ( Gazals )

17. Haan, Main Aurat Hoon ( Poetry of Women lib)

18. Mann Ke Rishte ( Sansmaran )

19. Pathhar Ke Panno Par ( Collection Famous Poetries )


Awards & Honers -

· 1988 Gorakhpur Geet Dvara (Precious Poetic Personality)

· 1992 Kavya Sangrah ‘Khandit Pooja’ Uttar Pradesh (U.P.) Hindi Sansthaan dvara ‘Mahadevi Verma Anushnsa’ Puruskaar.

· 1993 Akhil Bhartiya Lekhika Parishad Puruskar.

· 1993 Gazal-Sangrah ‘Kayi Baras Ke Baad’ U.P. Hindi Sansthaan dvara Nirala Naamit ‘Sammaan’ Puraskrit.

· 1994 ‘Mahadevi Verma’ Sammaan.

· 1995 Aslam Memorial Society dvara Pratham ‘Hindi-Gazal Award’.

· 1996 April ‘Pancham Vishv Hindi Sammelan’ ‘Bhartiya Vidya Sansthaan’ Trinidad, America ki Sahbhaagita ke Anantar Kayi Ekal-Kavya Paath Tatha ‘Bhartiya Vidya Sansthaan’ Trinidad, America dvara ‘Sammaan’.

· U.P. Mahila Manch dvara ‘Divya Sammaan’.

· 1996 Hindi Sahitya Sammelan Puruskaar.

· 1997 Sahitya Seva ke liye ‘National Solidarity’ Sammaan.

· 1997 Hindi Sahitya Sammelan Puruskaar.

· 1997 ‘Antarashtriya-Sahitya-Sanskrit_Vikas-Sansthaan’ Jabalpur, M.P. dvara Vishishth- Sahityaseva Sammaan.

· 1997 Naagrik Surakhsha Sangathan Lucknow dvara Sammaan.

· 1997 Gadtantra-Diwas Samaroh, Lucknow dvara ‘Sarvshreshth Sahitik Vyaktitva’ Shaskiya Sammaan.

· Manas-Sangam Kanpur dvara ‘Tulsi-Panchshati’ Sammaan.

· 1998 Internation Women Of The Year Award, Biography Center, Cambridge, England.

· ‘Bhartiya Fankaar Socirty’ dvara hindi sahitya par ‘Mahadevi Verma’ Award.

· CEC dvara ‘U.P. Ratna’ se Sammaanit.

· 1999 ‘Tulsipeeth’ Chitrakoot dvara ‘Tulsi-Bharti-Samlankaran’.

· Sant Kabir Pashth Shatabdi Antarashtriya treeya Adhiveshan ‘Dakshini America dvara’ ‘Antarashtriya Kabir’ Sammaan.

· Antarashtriya Bhartiya Vidya Sansthaan dvara ‘Trinidad Hindi Shikhar’ Sammaan.

· ‘Pinnacle of Poetry’ Award, Trinidad and Tobago, West Indies, South America.

· Saksharta Niketan Lucknow dvara ‘Vishishth Seva’ Sammaan.

· 2001, 14 September, ko Krishnonmukhi-Sahitya Sansthaan dvara ‘Vishishth Sahitya Seva’ Sammaan.

· Paatha Mahotsav Chitrakoot dvara Aadivaasi Kshetra mein Ullekhniya Samaj Seva hetu ‘Samaj Seva’ Sammaan.

· Sahitya Kalaa Seva Sansthaan, U.P. dvara ‘Sahitya Vibhooti Sammaan’.

· Uttar Pradesh Gaurav Award.

· Observer Award.

· 2005 Nazir Banarsi Award.

· Parveen Shaakir Award (Gazal).

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